![]() गरजि—गरजि कै जन जन केँ परचारि रहल अछि तरुण स्विदेशक की आबहुँ रहबें तों बैसल आँखि फोल, दुर्मंद दानव कोनटा लग पैसल कोशी—कमला उमडि रहल, कल्लौल करै अछि के रोकत ई बाढि, ककर सामर्थ्यल अडै अछि स्वीर्ग देवता क्षुब्धँ, राज—सिंहासन गेलै मत्त भेल गजराज, पीठ लागल अछि मोलै चलि नहि सकतै आब सवारी हौदा कसि कै ई अरदराक मेघ ने मानत, रहत बरसि कै एक बेरि बस देल जखन कटिबद्ध “चुनौती” फेर आब के घूरि तकै अछि साँठक पौती ? आबहुँ की रहतीह मैथिली बनल—बन्दिगनी ? तरुक छाह मे बनि उदासिनी जनक—नन्दिनी डँक बाजि गेल, आगि लँक मे लागि रहल अछि अभिनव विद्यापतिक भवानि जागि रहल अछि अनमोल वचन: चलना है, केवल चलना है| जीवन चलता ही रहता है| रुक जाना है, मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है| |