![]() पृथ्वी शिर मौर मुकुट चन्दन सन्तरिणी जन्मभूमि जननी। वन-वनमे मृगशावक, नभमे रवि-शशि दीपक, हिमगिरिसँ सागर तक विपुलायत धरणी, जन्मभूमि जननी। दिक्-दिक् मे इन्द्रजाल, नवरसमय आलवाल, पुष्पित अंचल रसाल, नन्दन वन सरणी, जन्मभूमि जननी। शक्ति, ओज, प्राणमयी, देवी वरदानमयी, प्रतिपल कल्याणमयी दिवा अओर रजनी, जन्मभूमि जननी। अनमोल वचन: चलना है, केवल चलना है| जीवन चलता ही रहता है| रुक जाना है, मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है| |