यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है|

सुख-दुःख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है|
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?
निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!
धुन एक सिर्फ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है|
बाधा के रोडों से लड़ता, वन के पेडो से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता|
लहरें उठती हैं, गिरती हैं;
नाविक तट पर पछताता है|
तब यौवन बढ़ता है आगे,
निर्झर बढ़ता ही जाता है|